हाथरस. बहुचर्चित हाथरस कांड से उबरने के बाद हाथरस एक बार फिर से देश की फिजा में होली के रंग बिखेरने को तैयार है। यूं तो होली पर देशभर में जगह-जगह रंग गुलाल बनाया और बेचा जाता है, लेकिन हाथरस के गुलाल की बात ही कुछ खास है। क्योंकि हाथरस का रंग गुलाल उद्योग लगभग 9 दशक पुराना है। जानकार बताते हैं कि एक समय ऐसा था, जब गुलाल सिर्फ हाथरस शहर में बनता था। यहां के गुलाल की सप्लाई होली से कई महीने पहले ही देशभर में शुरू हो जाती थी।
बता दें कि हाथरस में फिलहाल दर्जनभर से अधिक रंग और गुलाल बनाने की फैक्ट्रियां हैं और करीब आठ हजार लोग रंगों के इस कारोबार से जुड़े हैं। पिछले कई महीनों से यहां रंग गुलाल बनाने का काम चालू है। जिसे ऑर्डर के अनुसार सप्लाई किया जा रहा है। रंग गुलाल से जुड़े एक कारोबारी ने बताया कि हाथरस में अधिकांशत: गुलाबी, हरा, लाल, केसरिया और पीले रंग का गुलाल बनाया जाता है। गुलाल बनाने के पंजाब, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश से कच्चा माल आयात किया जाता है। उन्होंने बताया कि हाथरस में मूल रंग नहीं बनाया जाता है। यहां स्टार्च और डैक्सट्रीन पाउडर के बेस से रंग तैयार करते हैं। इसके बाद फैक्ट्रियां अपने मार्का के साथ बाजार में बेचती हैं।
दिल्ली-मुंबई तक होती है सप्लाई
एक उद्यमी ने बताया कि होली पर तकरीबन सभी शहरों में हाथरस के रंगों की खासी डिमांड रहती है। देश की राजधानी दिल्ली और फिल्म सिटी मुंबई के बड़े दुकानदार भी हाथरस से ही गुलाल मंगाते हैं। वहीं, उत्तर प्रदेश के सभी शहरों के अलावा हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, मध्यप्रदेश और उत्तराखंड समेत सभी राज्यों में हाथरस के गुलाल की अच्छी खासी डिमांड रहती है, इसलिए कारोबारियों ने कम माल ही बनवाया है।
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रंग कारोबार में समस्याएं
हाथरस । रंग गुलाल कारोबारियों का कहना है कि यहां के रंग उद्योग को सरकार की तरफ से कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है। टैक्स में छूट मिले तो यह उद्योग उबर सकता है। रंग कारोबार में सबसे बड़ी समस्या बिजली संकट, माल के परिवहन और लेबर की है। उन्होंने बताया कि परिवहन की सीधी व्यवस्था नहीं होने के कारण ट्रकों बार-बार माल चढ़ाना और उतारना होता है। इसलिए माल की कॉस्ट भी बढ़ जाती है।